The race between the rabbit and the tortoise is loved by all of us. Here is the story again as written by nana.
एक झील के पास एक बगिया में
रहता था खरगोश
झील से उसको मिलने आता
कछुवा था हर रोज़ |
दोनों की मित्रता की बातें
सबको लगती प्यारी
आपस के खेलों के संग
दुनिया लगती न्यारी |
खरगोश अपने फुर्तिले पन के
करतब था दिखलाता
तो कछुवा पानी में जाकर
खूब धूम मचाता |
कछुवा काम को धीरे करता
पर था धैर्यवान
खरगोश को अपने फुर्तिले पन पर
बहुत अधिक अभिमान |
एक दिन बगिया के जीवों ने उनको
दौड़ का खेल सुझाया
झील के पत्थर से मंदिर के झंडे तक
पहुँचने को बतलाया |
कछुवा बोला “कैसा है यह खेल ?”
मेरी और खरगोश की चाल में क्या है मेल ?
पर सब जीवों का सुनकर ताना
बड़ी मुशकिल से कछुवा माना |
बन्दर ने सीटी बजाई
तो दोनो ने दौड़ लगाई
पूरे ज़ोर से दोनो भागे
खरगोश निकल गया बहुत ही आगे |
रास्ते में खरगोश को एक पेड़ के नीचे
गाजरें दी दिखाई
उनको देख खाने की इच्छा से
खरगोश की “जीभ ललचाई” |
लालच वश बैठ वहीं पर पूरी गाजर खाई
और कछुवे को दूर जान कर उसको झपकी आई
कछुवा धीरे-धीरे चलता वृक्ष के पास से निकला
खरगोश को सोता छोर वहीं पर, अपनी मंजिल पाई |
नींद से जगने पर खरगोश ने
अपनी हार मानी
लालच और अभिमान के वश में
अपनी गलती जानी |
कर्मशीलता ही इस जग में सब कुछ देने वाली
आलस और लालच को छोड़ो, यह तथ्य कहें ज्ञानी ||
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