(Nana-ke-Bol) Control drives progress

राज्य कार्य से व्यथित था राजा 

मन में बहुत उदास 

दुखित मन से सोच-सोच कर 

पहुंचा गुरु के पास 

राज्य कार्य व्यवस्थित  हो कैसे 

कैसे करू विकास 

मार्ग दर्शन करें गुरु जी 

आप से यही है आस |

 

गुरु ने राजा को बैठाया 

भोजन करने को ठहराया 

जंगल से सूखी लकड़ी मंगवा कर 

आग जला भोजन बनवाया |

सुस्वादु भोजन परोसा राजन को

और ‘अग्नि’ का उत्तम रूप दिखाया 

फिर अचानक चूल्हे की जलती लकड़ी को 

एक कुटिया पर फेंकवाया 

धू-धू  जलती कुटिया दिखला कर 

अग्नि का विध्वंसक रूप समझाया |

 

अग्नि के दो रूपों को दिखलाकर 

गुरु ने राजन को समझाया 

और राज्य की उन्नति करने का 

उचित मार्ग उसे सुझाया 

देखो राजन अग्नि है बहुत ही गुणकारी 

नियंत्रण में यह सदा हितकारी 

सब हैं इसके बहुत आभारी 

नियंत्रण छूटे तो है विनाशकारी |

 

इसलिए हे राजन :

वही राज्य है सुखकारी 

जो गुणियों का सदा आभारी 

उन से काम कराए हितकारी 

पर ‘नियंत्रण’ का भी है अधिकारी |

(Nana-ke-Bol) Lord Buddha

भगवान बुद्ध

आओ तुमको आज सुनाऊं 

महात्मा बुद्ध की अमर कहानी 

संसारिक दुखों को देख के 

जिन की बदल गई थी जिन्दगानी |

राज घराने में पैदा हुए 

और सब सुखों का भोग किया 

बिमारी, बुढ़ापा और मृत्यु को देख 

उनका मन विचलित हुआ |

राजपाठ, गृहस्थी को छोड़ 

सत्य की खोज में लीन हुए 

‘छ:’ साल तक ज्ञान को खोजा 

पर दुःख के प्रश्न न विलीन हुए |

‘गया’ में पीपल वृक्ष के नीचे 

अखण्ड ध्यान में हुए मग्न 

४९ दिन तक ध्यान लगाया तो 

आलोकित हुआ ‘अंतरमन’ |

‘प्रकाशित मन’ से ‘बुद्ध’ कहलाए 

और बौध धर्म स्थापित किया 

‘सारनाथ’ से प्रारम्भ कर 

विश्व में उसका विस्तार किया 

दुखों के चार सत्य समझाए 

और अष्ट मार्ग का प्रचार किया 

अपने विचारों के बल पर 

मानवता का उद्धार किया |

(Nana-ke-Bol) Rain…

वर्षा ऋतु का रूप 

 

तप्ति गर्मी से राहत देने को 

जब नभ पर बादल छाए 

ठण्डी- ठण्डी हवा के झोंके जब 

सब के मन को भाए |

नन्ही-नन्ही जल की बून्दें जब 

धरती पर आ जाएं 

तो मानव-मन ख़ुशी से झूमे 

और गीत ख़ुशी के गाए |

किसान भी उल्लासित मन से 

खेतों में जुट जाएं 

धरती माँ की प्यास बुझे तो 

अच्छी फसलें आएं |

धन-धान्य के भण्डार भरें 

और खुशहाली छा जाए |

पेड़ों पर झूलों के संग शोभित 

तरुण ह्रदय इठलाए 

पेड़ पौधे झूम-झूम कर 

हवा में जब इठलाए 

तो पशु-पक्षी भी ठुमक ठुमक कर 

ख़ुशी से चहचाहएं  |

बादल देख के मोर भी नाचे 

मस्ताना बन जाए 

नाच-नाच के रंग बरसावे 

दुखों को हरता जाए |

अपनी सतरंगी किरणों से 

सूर्य भी रंग बिखराए 

और धरती से अम्बर तक जुड़ता 

इन्द्रधनुष बन जाए |

रंगों के संग उमंगों को भरकर 

मानव मन खिल जाए 

वर्षा ऋतु का यह रूप निराला 

सब के मन को भाए |

(Nana-ke-Bol) God is within us!

ईश्वर 

दुनिया का अजब दस्तूर देखा 

‘खुदाई’ पर लड़ने का गरूर देखा 

भिन्न-भिन्न रूपों में इनसान देखा 

उसका बताया भगवान देखा |

 एक ही ‘ज्योति’ के सब हैं पुजारी 

उसी की श्रृष्टि के सब अधिकारी 

विभिन्न रूपों में पूजते हैं उसको 

मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारे में ढूंडते हैं उसको |

वह तो सदा ही है पास हमारे 

फिर क्यों ढूंडते हैं न्यारे-न्यारे ?

उसको पाना है तो द्वेष मिटाओ 

भेद-भाव मिटा कर एक हो जाओ 

अच्छे इनसान बन कर प्रेम जगाओ 

अपने मन के शीशे को उजला बनाओ 

उसी की ‘छवि’ को जन-जन में पाओ 

तभी सम्भव है की उसको जान जाओ |

 

INSIGHTS: Tolerance

This doha from Sant Kabir Das reminds us to be tolerant to others. ..

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त 

अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत 

It says: We laugh when we see shortcomings in others, but we forget our own list of shortcomings.

STORIES: The Donkey?

 

A story from the Akbar & Birbal Tales…

One day Akbar went to the river to take a bath with his two sons and Birbal.

Akbar and his sons left their clothes with Birbal and stepped into the river. Birbal waited for them on the river bank with their clothes on his shoulder. Looking at Birbal, Akbar teased him and said, “Birbal, you look like a washerman’s donkey with a load of clothes!”

Birbal quickly retorted, “Your Majesty! I am carrying the load of not just one donkey, but actually three.”

Akbar was left speechless.

The exchange between Akbar The Great (Mogul emperor) and Birbal (his minister) have become folk stories in Indian tradition and illustrate day-to-day questions through for wisdom, wit and subtle humour.