Jan 6 2014 (Nana-ke-Bol) Two sides of the Mirror शीशे के दो रूप – और जीने का राज़ पार्दर्शी और दर्पण रूपों में शीशे पर जब हुआ विचार गुरु ने शिष्यों को समझाया दुनिया में जीने का आधार | पारदर्शी शीशे से देखो दिखता है अद्भुत संसार दर्पण के शीशे से खुलते हैं अपने मन के अन्तर द्वार | दर्पण से तुम पहचान बनाते पार्दर्शी से तुम उलझ जाते दुनिया कि बुराईयों में उलझे-उलझे अपने को तुम भूल जाते | दुनिया को अवश्य ही देखो पर अपना परीक्षण ज़रूर करो अपने को पहचान अंदर से कटु विचारों को दूर करो | अंतर मन में झांक के अपने प्रभु का भी स्मर्ण करो सांसारिक उल्झन को छोड़ो अपना ही निर्माण करो | पार्दर्शी शीशे से हटकर दर्पण को स्वीकार करो |
Jan 1 2014 (Nana-ke-Bol) 2014: Our dream Happy New Year! नए साल का स्वागत करके नवयुग कि शुरुवात करें पुराने भेद मिटाकर मन से देश निर्माण की बात करें | सरे समाज को शिक्षित करके सरस्वती का भण्डार भरें निष्काम कर्म कि ज्योति जगाकर गीता का आह्वान करें | गरीबों के उत्थान के हेतु नव उद्योग का निर्माण करें हरित और दुग्ध क्रांति के द्वारा कुपोषण को दूर करें | सात्विक भाव जगा कर सब में दुष्ट व्यवहार का नाश करें सब धर्मों का आदर कर के सब में शुद्ध विचार भरें | नारीत्व की महिमा समझा कर मातृत्व को प्रणाम करें गुरु जनों को प्रणाम कर के उन से सदगुण ग्रहण करें | परहित-सेवा ही जीवन है ऐसा ज्ञान प्रसार करें ऐसा देश बनाएं मिलकर दुनिया में सब याद करें |