(Nana-ke-Bol) Two sides of the Mirror

शीशे के दो रूप – और जीने का राज़ 

पार्दर्शी और दर्पण रूपों में 

शीशे पर जब हुआ विचार 

गुरु ने शिष्यों को समझाया 

दुनिया में जीने का आधार |

पारदर्शी शीशे से देखो 

दिखता है अद्भुत संसार 

दर्पण के शीशे से खुलते हैं 

अपने मन के अन्तर द्वार |

दर्पण से तुम  पहचान बनाते 

पार्दर्शी से तुम उलझ जाते 

दुनिया कि बुराईयों में उलझे-उलझे 

अपने को तुम  भूल जाते |

दुनिया को अवश्य ही देखो 

पर अपना परीक्षण ज़रूर करो 

अपने को पहचान अंदर से 

कटु विचारों को दूर करो |

अंतर मन में झांक के अपने 

प्रभु का भी स्मर्ण करो 

सांसारिक उल्झन को छोड़ो 

अपना ही निर्माण करो |

पार्दर्शी शीशे से हटकर 

दर्पण को स्वीकार करो |

(Nana-ke-Bol) 2014: Our dream

Happy New Year!

नए साल का स्वागत करके 

नवयुग कि शुरुवात करें 

पुराने भेद मिटाकर मन से 

देश निर्माण की बात करें |

सरे समाज को शिक्षित करके 

सरस्वती का भण्डार भरें 

निष्काम कर्म कि ज्योति जगाकर 

गीता का आह्वान करें |

गरीबों के उत्थान के हेतु 

नव उद्योग का निर्माण करें 

हरित और दुग्ध क्रांति के द्वारा 

कुपोषण को दूर करें |

सात्विक भाव जगा कर सब में 

दुष्ट व्यवहार का नाश करें 

सब धर्मों का आदर कर के 

सब में शुद्ध विचार भरें |

नारीत्व की महिमा समझा कर 

मातृत्व को प्रणाम करें 

गुरु जनों को प्रणाम कर के 

उन से सदगुण ग्रहण करें |

परहित-सेवा ही जीवन है 

ऐसा ज्ञान प्रसार करें 

ऐसा देश बनाएं मिलकर 

दुनिया में सब याद करें |