(Nana-ke-Bol) Gita – what I have learnt…

Gita – What I have learnt…

जब भी में गीता को पढ़ने का प्रयास करता हूँ, तब मेरा सर चकरा जाता है। फिर एक दिन मेरे नाना ने मुझे गीता का सार बताया, तो मुझे लगा कि जो हमारी गीता का अर्थ है, वह कितना प्रेरणादायक है।

काफी लोगों को गीता के ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ और ‘यदा-यदा हि धर्मस्य’ श्लोक सबसे अच्छे और महत्त्वपूर्ण लगते हैं, किन्तु मुझे तो इन श्लोकों अतिरिक्त निम्न भी अच्छा लगता है –

अनन्याश्चिन्तयन्तो मा ये जनाः पर्युपासते।
तेषाम नित्याभियुक्तानाम योगक्षेमं वहाम्यहम।। ९-२२।।

“जो मुझ परमेश्वर को बिना किसी कामना के अनन्य भाव से भजते हैं, उनके योग (अर्थात जो उनके पास नहीं है) की प्राप्ति, और क्षेम (अर्थात जो उनके पास है) की रक्षा का मैं (परमात्मा) स्वयं ध्यान रखता हूँ)।

किन्तु इन श्लोकों को समझने में मुझ जैसे छोटे विद्यार्थियों को कठिनाई आती है। पर जब मेरे नाना ने मुझे आसान शब्दों में गीता का भाव समझाया तो उन्होंने मेरे साथ मिलकर गीता को एक सरल कविता का रूप दिया। मैं चाहता हूँ कि हमारी यह कविता सब बच्चों को प्रेरणा दे।

– पार्थ

श्री कृष्ण की शरण में आ जाओ
और उन में अपना ध्यान लगाओ
गीता-ज्ञान सुनाकर सब को
प्रभु को श्रद्धा-सुमन चढ़ाओ |

और प्रेम से सारे मिलकर बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

महाभारत युद्ध समय जब, मोहवश अर्जुन घबराया
तो श्री कृष्ण ने प्रेम से उसको यूं समझाया
आत्मा तो सदा अमर है
पर नश्वर है यह, पांच तत्वों की काया
काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह वश
जिस मानव का जीवन भरमाया
और आसक्ति के बन्धन में पड़कर
जब वह लड़ने को आया

तो उससे बन्धन तोड़ के बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

ध्यान योग से बुद्धि को बलवान करो
उत्तम ज्ञान अर्जित करके कर्मों की पहचान करो
फल की इच्छा छोड़ के केवल
सत्कर्मों में ही विश्वास करो |
स्थिर- बुद्धि वाला बनकर
धर्म की पहचान करो

धर्म-युक्त विश्वास से बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

ज्ञान की ज्योति जलाकर मन में
कर्म के रूपों को पहचानो
कर्म, विकर्म, अकर्म को समझो
धर्म युक्त कर्मों की ठानो |
काम-क्रोध- मोह के वश में
जो अपना धर्म न पहचाने
और सारे उचित व्यवहार मिटा कर
तुम से लड़ने की ठाने

उससे धर्म-स्थापना हेतु लड़कर बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

प्रभु के रूप को सब में जानो
सबमें उसकी छवि पहचानो
सूर्य की भान्ति अलिप्त रूप में
सब में उसे आलोकित मानो
उससे ही तुम शक्ति पाओ
और शुभ कार्यों में लग जाओ |
सात्विक भोजन कर अपने में
सात्विक भाव ही जगाओ

सात्विकता को समझ के बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

श्रृष्टि-रचना से सब कार्य केवल
प्रभु शक्ति से ही चलते हैं
मानव कर्मों के फल भी केवल
प्रभु-न्याय से ही मिलते हैं |
कर्म करने का अधिकार है तुमको
फल का कोई अधिकार नहीं
सात्विक भाव से कार्य को करना
लेना कोई प्रतिकार नहीं |

फल की इच्छा त्याग कर बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

आसक्ति युक्त कर्म करोगे तो
वैसे ही फल पाओगे
उन्हीं भावों को लेकर तब तुम
मृत्यु शय्या से जाओगे
और उन्हीं भावों के फल से उपजित
नए जीवन को पाओगे |
और ऐसे तुम जन्म-जन्म के
चक्र में घूमते जाओगे |

आसक्ति के बन्धन तोड़ के बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

कर्म के भेदों को समझो और
निष्काम कर्म में चित लगाओ
यज्ञ-ताप-दान के कर्मों से
प्रभु के कार्यों में हाथ बंटाओ |
कर्मफल की चिंता छोड़ के
मन में सात्विक भाव जगाओ
कर्ताभाव का त्याग करके
भ्रह्म रूप में ही मिल जाओ |

ऐसे प्रभु में रम कर बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

Submitted as an entry in the Essay Writing Competition for Internal Gita Mahotsav in Kurukshetra on December 05, 2016.