(Nana-ke-Bol) 03.11.2017

सोलहवें जन्म दिवस पर, हर्षित मन से
हमारी ‘बधाई’ करो स्वीकार
सुखदाई हो जीवन तुम्हारा
सपने साकेत हों साकार ।

आज जन्म दिवस के अवसर पर
करलो मन में शुभ विचार
कैसा हो भविष्य तुम्हारा
जीवन का आधार।

भूतकाल के अनुभव से सीखो
छोड़ो मन के बुरे विचार
विद्या और कर्म का महत्व समझ कर
मेहनत करलो ख़ूब अपार ।

सत्संगती और सुसिक्षा से ही
बनता सबका शुभ संसार
प्रभु तुम्हारे जीवन में भर दें
ख़ुशियों के सारे भंडार ।।

(Nana-ke-Bol) Gita – what I have learnt…

Gita – What I have learnt…

जब भी में गीता को पढ़ने का प्रयास करता हूँ, तब मेरा सर चकरा जाता है। फिर एक दिन मेरे नाना ने मुझे गीता का सार बताया, तो मुझे लगा कि जो हमारी गीता का अर्थ है, वह कितना प्रेरणादायक है।

काफी लोगों को गीता के ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ और ‘यदा-यदा हि धर्मस्य’ श्लोक सबसे अच्छे और महत्त्वपूर्ण लगते हैं, किन्तु मुझे तो इन श्लोकों अतिरिक्त निम्न भी अच्छा लगता है –

अनन्याश्चिन्तयन्तो मा ये जनाः पर्युपासते।
तेषाम नित्याभियुक्तानाम योगक्षेमं वहाम्यहम।। ९-२२।।

“जो मुझ परमेश्वर को बिना किसी कामना के अनन्य भाव से भजते हैं, उनके योग (अर्थात जो उनके पास नहीं है) की प्राप्ति, और क्षेम (अर्थात जो उनके पास है) की रक्षा का मैं (परमात्मा) स्वयं ध्यान रखता हूँ)।

किन्तु इन श्लोकों को समझने में मुझ जैसे छोटे विद्यार्थियों को कठिनाई आती है। पर जब मेरे नाना ने मुझे आसान शब्दों में गीता का भाव समझाया तो उन्होंने मेरे साथ मिलकर गीता को एक सरल कविता का रूप दिया। मैं चाहता हूँ कि हमारी यह कविता सब बच्चों को प्रेरणा दे।

– पार्थ

श्री कृष्ण की शरण में आ जाओ
और उन में अपना ध्यान लगाओ
गीता-ज्ञान सुनाकर सब को
प्रभु को श्रद्धा-सुमन चढ़ाओ |

और प्रेम से सारे मिलकर बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

महाभारत युद्ध समय जब, मोहवश अर्जुन घबराया
तो श्री कृष्ण ने प्रेम से उसको यूं समझाया
आत्मा तो सदा अमर है
पर नश्वर है यह, पांच तत्वों की काया
काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह वश
जिस मानव का जीवन भरमाया
और आसक्ति के बन्धन में पड़कर
जब वह लड़ने को आया

तो उससे बन्धन तोड़ के बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

ध्यान योग से बुद्धि को बलवान करो
उत्तम ज्ञान अर्जित करके कर्मों की पहचान करो
फल की इच्छा छोड़ के केवल
सत्कर्मों में ही विश्वास करो |
स्थिर- बुद्धि वाला बनकर
धर्म की पहचान करो

धर्म-युक्त विश्वास से बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

ज्ञान की ज्योति जलाकर मन में
कर्म के रूपों को पहचानो
कर्म, विकर्म, अकर्म को समझो
धर्म युक्त कर्मों की ठानो |
काम-क्रोध- मोह के वश में
जो अपना धर्म न पहचाने
और सारे उचित व्यवहार मिटा कर
तुम से लड़ने की ठाने

उससे धर्म-स्थापना हेतु लड़कर बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

प्रभु के रूप को सब में जानो
सबमें उसकी छवि पहचानो
सूर्य की भान्ति अलिप्त रूप में
सब में उसे आलोकित मानो
उससे ही तुम शक्ति पाओ
और शुभ कार्यों में लग जाओ |
सात्विक भोजन कर अपने में
सात्विक भाव ही जगाओ

सात्विकता को समझ के बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

श्रृष्टि-रचना से सब कार्य केवल
प्रभु शक्ति से ही चलते हैं
मानव कर्मों के फल भी केवल
प्रभु-न्याय से ही मिलते हैं |
कर्म करने का अधिकार है तुमको
फल का कोई अधिकार नहीं
सात्विक भाव से कार्य को करना
लेना कोई प्रतिकार नहीं |

फल की इच्छा त्याग कर बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

आसक्ति युक्त कर्म करोगे तो
वैसे ही फल पाओगे
उन्हीं भावों को लेकर तब तुम
मृत्यु शय्या से जाओगे
और उन्हीं भावों के फल से उपजित
नए जीवन को पाओगे |
और ऐसे तुम जन्म-जन्म के
चक्र में घूमते जाओगे |

आसक्ति के बन्धन तोड़ के बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

कर्म के भेदों को समझो और
निष्काम कर्म में चित लगाओ
यज्ञ-ताप-दान के कर्मों से
प्रभु के कार्यों में हाथ बंटाओ |
कर्मफल की चिंता छोड़ के
मन में सात्विक भाव जगाओ
कर्ताभाव का त्याग करके
भ्रह्म रूप में ही मिल जाओ |

ऐसे प्रभु में रम कर बोलो
श्री कृष्ण शरणं नम:, श्री कृष्ण शरणं नम: |

Submitted as an entry in the Essay Writing Competition for Internal Gita Mahotsav in Kurukshetra on December 05, 2016.

(Nana-ke-Bol) 03.11.2016

जन्म दिन ‘मुबारक’ तुमको, हम सब कहें बारंबार
ख़ुशियों से भरपूर हो जीवन, सपने तुम्हारे हों साकार ।

‘चौदह बसंत’ देख के आइ है, तुम्हारे यौवन की बहार
खेल-खिलौने पीछे छूटे, कर लो मन में गूढ़ विचार ।

उचित आहार, स्वस्थता लाए, ज्ञान जगाए शुद्ध विचार
माँ सरस्वती के पूजन से ही है बढ़ता, अपने ज्ञान का भण्डार ।

उचित आचार, व्यवहार को सीखो, ये हैं जीवन के आधार
सत्य बोलो, क्रोध को छोड़ो, मधुर वाणी से करो सत्कार ।

मधुर-मधुर मुस्कान के संग तुम, मुख पर लाओ श्रेष्ठ विचार
सत्संगती को अपना कर, बुराई का करना, सदा बहिष्कार ।

मेहनत करना मूल मंत्र है, फल को छोड़ो प्रभु के द्वार
असफलता के क्षण से सीखो, ऊपर उठना बारंबार ।

प्रभु का साथ कभी न छूटे, यही विनती यही पुकार
हमारी आशीष तुम्हारे जीवन में, भर दे ख़ुशियों के भण्डार ।

(Nana-ke-Bol) 03.11.2015

तुम्हारे १४वें जन्म दिन पर, हमको वह दिन याद आए
जब नन्ही सी गुड़िया हमारे घर में आए
हँसती, मुस्कुराती, इठलाती, शर्माएँ
मीठी-मीठी बातों से, सबके मन को बहलाए ।

समय के साथ अपनी हँसी को ना खोना
प्रिया वचनो से सब का मन मोह लेना
क्रोध और चिंता से दूर ही रहना
सतकर्मों में अपने चित को लगाना
इर्शा और द्वेष को दूर भगाकर
मित्रता और सद्भाव को अपनाना
सुसिक्षाऔर उच्च ज्ञान को पाकर
अपना और देश का नाम बढ़ाना ।

तुम्हारे जन्म दिन पर हमारी हार्दिक दुआएँ
जीवन का हर क्षण मधुर बन जाए
कष्टों से दूर, ख़ुशियों को लाए
ज्ञान का दीपक, सही राह दिखाए ।

(Nana-ke-Bol) 03.11.2014

आज तुम्हारे १३वें जन्म दिवस पर
हमारी है अभिलाषा
प्रभु तुम्हारे जीवन 
की सब
दूर करे निराशा ।

‘वाणी’ नाम को सार्थक करके
मधुर-मधुर हो भाषा
सब का प्यार मिले जीवन भर
यही हमारी आशा ।

तन पवित्र हो सेवा करके
मन पवित्र हरी नाम
उत्तम कर्म से शान मिले
और ज्ञान से सुलझे काम ।

जन्म-दिन मनमंथन करके
त्रुटियों पर करो विचार
ऐसा भविष्य निर्माण करो कि
सब का मिले प्यार ।

(Nana-ke-Bol) On Ram Navmi…

श्री रामचन्द्र जी के जन्म दिन पर 

कर लो उन्हें प्रणाम 

बोलो राम-राम-राम, बोलो राम-राम-राम । 

माता पिता के आज्ञाकारी 

ज्ञानवान और शक्तिधारी 

प्रसन्न वदन और सदाचारी 

जन-जन के थे वह हितकारी 

रामचन्द्र गुण ग्रहण करो 

कर लो उनका गान 

बोलो राम-राम-राम, बोलो राम-राम-राम । 

उनका जीवन बड़ा निराला 

भ्रातृ प्रेम समझाने वाला 

माया मोह छुड़ाने वाला 

सुख-दुःख में साथ निभाने वाला 

उनको आदर्श मान कर मन में 

कर लो उनका ध्यान 

बोलो राम-राम-राम, बोलो राम-राम-राम । 

ऊँच नीच न माने भाई 

जन-जन को इज़ज़त दिलवाई 

प्रजा रहे सदा सुख दाई 

अपनी मर्यादा सदा निभाई 

मर्यादा पुरुषोत्तम राम से सीखो 

करना अच्छा कम 

बोलो राम-राम-राम, बोलो राम-राम-राम । 

(Nana-ke-Bol) On Navratri…

चैत्र-मास के शुक्ल पक्ष ने जब 

‘नव-वर्ष'(1) में प्रवेश किया 

नई-नई कोपलों के संग पेड़ों पर 

प्रकृति ने श्रृंगार किया |

किसानों की फसलों ने पक कर 

उज्जवल भविष्य का इज़हार किया 

नव-सृजन के मातृत्व-रूप को देख 

तब मानव ने प्रणाम किया |

‘माँ’ भगवती के नौ रूपों का 

नवरात्री में आह्वान किया 

मन-वाणी को शुद्ध किया 

सात्विक भाव स्वीकार किया |

बुराइयों को दूर भगाकर 

मानवता से प्यार किया |

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(१) “२०६७ वर्ष पूर्व विक्रमादित्य ने इस दिन 

‘विक्रम संवत्सर’ का प्रारम्भ किया 

भारतीय नव-वर्ष रूप में तब 

सब ने इस को भी सम्मान दिया