See how i spent my 11th birthday… Nana wrote the poem after the picnic today
Vani
साल के ग्यारवें महीने की तीन तारीख को
जब मेरा ‘ग्यारवां ‘ जन्मदिन आया
तो मैं ने सहेलियों के साथ मिलकर
खूब जशन मनाया ।
और जशन का अगला दिन
‘पिकनिक’ के रूप में आया
जब घर के सारे लोगों को
नेहरु पार्क आने का संदेश भिजवाया |
‘पिकनिक’ का दिन भी क्या दिन था
खुशियों से भरा था, सपनों से सजा था
सन्डे की छुट्टी थी, सुबह की ठंडक थी
तय्यारी की जल्दी थी, मन में मस्ती थी |
पार्थ, मम्मी, पापा और घर वालों के संग
पिकनिक की सारी चीज़ों को लेकर उठी उमंग
पार्क में जाकर, हरी-हरी घास की चादर पर
बैठे हम पिकनिक की चीज़ों को सजा कर |
चारों ओर ऊंचे-ऊंचे ‘पाम’ के वृक्षों के
दृष्यों का मज़ा उठाया
और साथियों संग मिलकर हमने
‘बैडमिंटन’ एवं ‘क्रिकेट’ का खेल जमाया |
कबूतरों की उड़ती कतारों का आनन्द उठाया
चीलों और कोओं से भोजन को बचाया
‘मिमिकरी’ और ‘तंबोला’ संग मज़े उड़ाए
केक काट कर बड़िया-बड़िया भोजन खाए |
जन्म दिन की यह पिकनिक थी
अति ही प्यारी
हिल-मिल कर रहने और
ख़ुशी मनाने से लगती न्यारी ।
The key messages from Swami Vivekananda touch all dimensions of our life and guide us to live a purposeful life.
श्री राम कृष्ण परम हंस के शिष्यों में
स्वामी विवेकानन्द थे बहुत महान |
आत्म तत्व का बोध कराकर
दिया विश्व को वेद पुराण || [1]
सब धर्मों में विश्वास जगाकर
दिव्य रूप हम को दिखलाया |
द्वेष भाव मिटाकर जग से
सत्य रूप हम को समझाया || [2]
प्रसन्नता ही हैं चेहरे की रौनक
सब के मन को भाए |
हर्षित मन से की गई सेवा ही
आराधन बन जाए || [3,4]
ज्ञानी बनकर मत बैठो तुम
थोड़ा आचरण भी कर लो |
सही में जीना चाहते हो तो
जन-जन की सेवा कर लो || [5]
आओ विवेकानन्द के आदर्शों पर चलकर
आत्म विश्वास जगाएं हम |
मिल जुल कर रहना सीखें
जग को सफल बनाएं हम || [6]
Notes:
Swami Vivekananda says:
[1] Each soul is potentially divine.
[2] We want to lead mankind to the place, where is neither Vedas, nor Bible, nor the Koran; yet this has to be done by harmonizing the Vedas, the Bible, and the Koran.
Mankind ought to be taught that religions are but the varied expressions of THE RELIGION which is ONENESS, so that each may choose the path that suits him best.
[3] By being pleasant always and smiling you reach nearer to God, nearer than any prayer.
[4] One ounce of practice is worth a thousand pounds of theory.
[5] They only live who live for others.
[6] The greatest sin is to think yourself weak.
Lets just take out a few minutes to remember Mahatma Gandhi’s teaching – not just for what it helped us to achieve in the past but for the latent power it holds to achieve any challenge in the future.
जीवन ज्योति जलाएं हम
आओ दो अक्टूबर को गांधी जयन्ति मनाएं हम,
उनके आदर्शों पर चलकर जीवन ज्योति जलाएं हम |
सत्य के पथ पर चलने वाले,
अहिंसा से लड़ने वाले
किसी से न डरने वाले,
परहित सेवा करने वाले
बापू को अपनाएं हम, जीवन ज्योति जलाएं हम |
सादा जीवन उच्च विचार,
उनके जीवन के आधार
सत्य अहिंसा के अनुयाई,
मन से जानें पीर पराई
सब धर्मों के थे ज्ञाता,
देखें सब में एक विधाता
छोड़ो हिंसा करलो प्यार,
बताएं सब धर्मों का सार
प्यार और शांति का सन्देश देकर,
विश्व को कुटुंब बतलाने वाले
बापू को अपनाएं हम, जीवन ज्योति जलाएं हम ||
स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रिम सैनानी,
अंग्रेजों से हार न मानी
निडरता से बोले वाणी,
“भारत छोड़ो” इंग्लिस्तानी
“पूर्ण स्वधीनता” का देकर नारा,
सत्याग्रह से उन्हें पछाड़ा
भारत स्वतंत्र करने वाले बापू को अपनाएं हम
बापू को अपनाएं हम, जीवन ज्योति जलाएं हम |
कुटीर उद्योग उजाकर करके,
स्वदेशी का मान बढ़ाने वाले
छुआ छूत की निंदा करके,
हरिजन रूप दिखलाने वाले
तीन बंदरों के माध्यम से
“बुरा न सुनो, बुरा न देखो, बुरा न बोलो” समझाने वाले
बापू को अपनाएं हम, जीवन ज्योति जलाएं हम |
बापू के आदर्शों पर चलकर गांधी जयन्ति मनाएं हम |
बापू को अपनाएं हम, जीवन ज्योति जलाएं हम ||
एक जंगल के शेर राजा, बड़े थे खूंखार
बिना वजह सब जीवों का, करते थे संहार |
सब जीव बहुत दुखी थे उनसे, कैसे पाएं पार ?
क्या तरकीब करें कि उनका, दूर हो अत्याचार ?
एक दिन सब जीव इक्ठे हो कर, करने लगे विचार
पहुंचे शेर की “मांद” के बाहर, ज़ोर से करी पुकार |
बेवजह हम को मारना छोड़ो, हमसे करो प्यार
आप की भूख मिटाने को हम सब, मन से हैं तय्यार |
हम भेजेंगे एक जीव को, हर रोज़ आप के पास
आपकी भूख मिटाकर रोकें, इस संहार की प्यास |
शेर राजा ने खुश होकर, सब जीवों का यह सुझाव स्वीकारा
और हर दिन खूब मज़े से, एक जीव को मारा |
हिरन, भेड़िया, लोमड़ी, भालू आदि, गए बारी बारी
फिर एक दिन ऐसा भी आया, जब नन्हे खरगोश की आई बारी |
खरगोश था बहुत ही हिम्मत वाला, और था बुद्धिमान
चलते-चलते सोचने लगा, कैसे बचाऊँ जान |
रास्ते में एक कुएं में देख, अपनी परछाई
शेर से जान बचाने की, तरकीब मन से आई |
धीरे-धीरे चलकर जब वह, शेर के पास पहुंचा
तो नन्हे खरगोश को देख कर, शे ज़ोर से गरजा |
तब नन्हे खरगोश ने डरते-डरते उसे बताया
कि कुएं के पास एक और शेर ने खाने को धमकाया |
बड़ी मुशकिल से भाग वहां से, आपके पास हूँ आया
दूसरे शेर कि बात को सुनकर, शेर बहुत गुस्साया |
खरगोश से संग कुएं पार जाकर, देख अपनी परछाई
दूसरा शेर समझ कर अन्दर, ज़ोर से दहाड़ लगाई |
फिर कुएं के अन्दर से भी, ज़ोर की प्रतिध्वनी आई
दूसरे शेर की ललकार समझकर, कुएं में छलांग लगाई |
धम से कुएं के पानी में डूब, अपनी जान गंवाई
शेर राजा की मौत का सुनकर, सब जीवों ने खूब ख़ुशी मनाई |
नन्हे खरगोश की हिम्मत पर, उसको दी बधाई |
कठिन समय में केवल धैर्य और बुद्धि ही हमारे काम आती है |
नन्हे खरगोश की यह कहानी हम को यही बात समझाती है ||
The race between the rabbit and the tortoise is loved by all of us. Here is the story again as written by nana.
एक झील के पास एक बगिया में
रहता था खरगोश
झील से उसको मिलने आता
कछुवा था हर रोज़ |
दोनों की मित्रता की बातें
सबको लगती प्यारी
आपस के खेलों के संग
दुनिया लगती न्यारी |
खरगोश अपने फुर्तिले पन के
करतब था दिखलाता
तो कछुवा पानी में जाकर
खूब धूम मचाता |
कछुवा काम को धीरे करता
पर था धैर्यवान
खरगोश को अपने फुर्तिले पन पर
बहुत अधिक अभिमान |
एक दिन बगिया के जीवों ने उनको
दौड़ का खेल सुझाया
झील के पत्थर से मंदिर के झंडे तक
पहुँचने को बतलाया |
कछुवा बोला “कैसा है यह खेल ?”
मेरी और खरगोश की चाल में क्या है मेल ?
पर सब जीवों का सुनकर ताना
बड़ी मुशकिल से कछुवा माना |
बन्दर ने सीटी बजाई
तो दोनो ने दौड़ लगाई
पूरे ज़ोर से दोनो भागे
खरगोश निकल गया बहुत ही आगे |
रास्ते में खरगोश को एक पेड़ के नीचे
गाजरें दी दिखाई
उनको देख खाने की इच्छा से
खरगोश की “जीभ ललचाई” |
लालच वश बैठ वहीं पर पूरी गाजर खाई
और कछुवे को दूर जान कर उसको झपकी आई
कछुवा धीरे-धीरे चलता वृक्ष के पास से निकला
खरगोश को सोता छोर वहीं पर, अपनी मंजिल पाई |
नींद से जगने पर खरगोश ने
अपनी हार मानी
लालच और अभिमान के वश में
अपनी गलती जानी |
कर्मशीलता ही इस जग में सब कुछ देने वाली
आलस और लालच को छोड़ो, यह तथ्य कहें ज्ञानी ||
अंगूर खट्टे हैं
एक बन्दर पेड़ पर बैठा
अंगूरों को खाए
नीचे बैठी लोमड़ी के
“मुंह में पानी आए” |
बिनती करने पर बन्दर ने
फेंका एक अंगूर
“ऊंट के मुंह में जीरे जैसा”
लोमड़ी थी मजबूर |
सोचा खुद ही अंगूरों की
बगिया में मैं जाऊं
ढेर से अंगूरों को लेकर
खूब मज़े से खाऊँ |
यह सोच वह बगिया पहुंची
अंगूर लगे थे दूर
उच्छल-उच्छल कर कोशिश करली
पहुंचने में मजबूर |
“अंगूर खट्टे हैं”
खीज के बोली
मन ही मन
चुपके से रो ली |
मुहावरों की इस कविता से
मुझ को है बतलाना
अच्छी चीज़ न मिलने पर
बुरा न उसको कहना |
लगातार कोशिश करने से
संभव है उसको पाना ||
One of the old favourite stories of all children – Monkeys and the Topiwala. It reminds us that Presence of mind can save the day and show simple solutions.
एक सेठ था टोपी वाला
बहुत चतुर बहुत मतवाला
उसकी टोपी सितारों वाली
सबके मन को भाने वाली
मुख़ड़े को चमकाने वाली
मन में जोश जगाने वाली |
ऐसी टोपी का एक बड़ा सा गठ्ठर
लेकर चले सेठ जी जंगल के अन्दर |
चलते चलते थके सेठजी
पेड़ पर बैठे देखें बन्दर |
टोपी का गठ्ठर था भारी
सुस्ताने की करी तय्यारी |
पेड़ की छांव थी प्यारी प्यारी
सेठ ने गठ्ठर वहीं उतारी |
खा पी कर मन लगा ठिकाने
लेट कर लगे थकान मिटाने |
चुपके से बन्दर नीचे आए
गठ्ठर खोल बहुत हर्षाए |
टोपी पहन बहुत इठलाए
पेड़ पर जाकर धूम मचाए |
यह देख सेठजी चकराए
पर वह बिल्कुर न घबराए |
उन्होंने एक तरकीब लड़ाई
अपनी टोपी बन्दरों को दिखाई |
फिर टोपी से करने लगे इशारे
यह देख बन्दर भी उनकी नकल उतारे |
यह देख सेठजी मुस्काए
नकलची बन्दर समझ न पाए |
टोपी फेंक कर करी होशियारी
बन्दरों ने भी टोपी फेंक कर नकल उतारी |
सारी टोपी ज़मीन पर आई
देखो सेठजी की चतुराई |
कठिन समय हिम्मत न हारो
सोच समझ कर काम संवारों |